"डॉक्टर की लापरवाही के लिए अस्पताल प्रबंधन भी बराबर का जिम्मेदार होता है"
इस दो टूक शब्दों पर आधारित व्यवस्था के साथ सुप्रीम कोर्ट के डबल बेंच ने एक विचाराधीन मामले में अपना अहम फैंसला सुनाया है। जस्टिस उदय उमेश ललित और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की बेंच ने एनसीडीआरसी के आदेश को बरकरार रखते हुए, ये टिप्पणी की।
कोर्ट ने कहा कि एक चिकित्सा पेशेवर को किसी भी पेशेवर कार्य में खतरों और जोखिमों के प्रति इस हद तक सतर्क होना चाहिए कि पेशे के अन्य सक्षम सदस्य सतर्क रहें। उसे किसी भी पेशेवर कार्य में, जिसे वो कर रहा है, उचित कौशल के साथ करना चाहिए, जिसे पेशे के दूसरे सक्षम सदस्य भी अपना सकें।
शीर्ष कोर्ट के इस ताज़ा फैंसले ने जालंधर के पटेल अस्पताल प्रबंधन की धड़कने बढ़ा दी है। कारण यह फैंसला उस समय आया है जब प्रबंधन की अपील नेशनल कंज़्यूमर डिस्प्यूट्स रेड्रेसल कमीशन के समक्ष सुनवाई के लिए लंबित हुई है तथा कमीशन के निर्देश पर पटेल प्रबंधन ने पेनाल्टी की 50% राशि फ्रीज करवाई है। यह वही मामला है कि जिसमें यूको बैंक के मैनेजर विश्वामित्तर की पत्नी की इलाज़ दौरान मौत होने पर स्टेट कमीशन से भी अस्पताल प्रबंधन को करीब 50 लाख की पेनल्टी ठुकी है और प्रबंधन अब नेशनल कमीशन में गुहार लेकर पहुंचा है।
यह है मामला जिसमें शीर्ष कोर्ट ने सुनाया फैंसला
डॉक्टरों ने कथित रूप से एक प्री-टर्म बेबी के रेटिनोपैथी की अनिवार्य नहीं की, जिसके कारण वो अंधा हो गया। (महाराजा अग्रसेन अस्पताल बनाम मास्टर ऋषभ शर्मा) चिकित्सा लापरवाही पर बोलम टेस्ट और अन्य फैसलों का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि प्रीमैच्योर बेबी की देखभाल के लिए बने उचित मानक के मुताबिक आरओपी की जांच अनिवार्य है। एनसीडीआरसी की जांच को बरकरार रखते हुए बेंच ने लड़के और उसकी मां को 76,00,000 रुपए का मुआवजा दिया और राशि के उपयोग का निर्देश भी जारी किया।
कोर्ट ने आगे कहा कि "यह सामान्य अनुभव है कि जब भी कोई मरीज किसी अस्पताल में जाता है तो वह अस्पताल की प्रतिष्ठा के आधार पर वहां जाता है, और इस उम्मीद के साथ कि अस्पताल के अधिकारियों द्वारा उचित देखभाल की जाएगी। यदि अस्पताल अपने डॉक्टरों के माध्यम से, जो नौकरी या अनुबंध के आधार पर नियुक्त किए गए होते हैं, अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में विफल रहता है तो हैं, यह अस्पताल है जिसे अपने डॉक्टरों की ओर से की गई चूक की सफाई देनी पड़ती है।
जजमेंट में शीर्ष कोर्ट ने मेडिकल लापरवाही के कानून के विकास का भी उल्लेख किया। अरुण कुमार मांगलिक बनाम चिरायु हेल्थ एंड मेडिकेयर (पी) लिमिटेड के मामले का उल्लेख करते हुए यह कहा गया कि बोलम (सुप्रा) में दी जाने वाली देखभाल का मानक अंग्रेजी और भारतीय अदालतों द्वारा अपनाई गई व्याख्या के अनुरूप होना चाहिए।