होशियारपुर की सेशन कोर्ट से बड़ी खबर प्राप्त हुई है कि अदालत ने साल 2007 के बहुचर्चित स्याल दंपति सुसाइड केस में नामजद सभी आरोपियों को निर्दोष करार देकर बरी कर दिया है। कोर्ट के इस फैंसले से जालंधर में केसर फिलिंग स्टेशन के संचालक दीपक केसर को भी बड़ी राहत मिली है। फ्लैशबैक यह है कि होशियारपुर पुलिस ने चिंतपूर्णी-होशियारपुर मार्ग पर एक कार PB 26D1377 से दंपति को मृत पाया था। पड़ताल के बाद सामने आया था कि यह जालंधर की निवेश कंपनी के मालिक विनोद स्याल और उनकी पत्नी कुसुम स्याल है। बेटे करण स्याल के बयान पर पुलिस ने पहले आत्महत्या के लिए उकसाने का केस दर्ज किया बाद में उसकी सहमति से कैंसिल भी कर दिया था। बावजूद उसके पुलिस ने एक पुलिस अधिकारी के विजिलेंस ब्यूरो में तैनाती के प्रभाव में चार्जशीट दायर करवाकर आरोपियों को गिरफ्तार करवाकर जेल यात्रा करवा दी थी। कारण आरोपी अपने निवेश की रकम सेटल करने के लिए हाथ-पैर मार रहे थे जबकि अफसर सारी प्रॉपर्टी का खेल कर रहा था। वर्तमाम समय में एक आरोपी विकास नैय्यर भगोड़ा करार है। आरोपी सुनीत स्याल और शशि स्याल की पैरवी जालंधर के युवा वकील रविश मल्होत्रा ने की और डिफेंस में काफी दलीलें पेश करके केस को न्याय तक पहुंचाने में कोर्ट की मदद की।
अफसरशाही के गैंग ने खेला था खेल
जैसी की उस समय चर्चा आम थी कि घटना के उस दशक के दौरान हुए स्याल ग्रुप फ्रॉड कांड के बाद यह मामला काफी हाईलाइट हुआ और पुलिस ने निवेशकों पर ही मामला दर्ज कर लिया था क्योंकि निवेशक अपना पैसा वापिस मांग रहे थे जबकि एक प्रभावशाली गैंग ने फर्जी नामों से किये निवेश की अपनी ब्लैकमनी रिकवर करने के लिए शोर मचाने वाले निवेशकों को सुसाइड केस में नामजद करवा दिया था। राहत पानेे वाले आरोपी खुला आरोप लगाते रहे हैं कि एक पुलिस अधिकारी और एक न्यायिक अधिकारी की मिलीभगत से उनको केस में नामजद किया गया था ताकि शेष प्रॉपर्टी को बेचकर अपना मकसद पूरा किया जा सके और ऐसा हुआ भी था। गैंग के करीबी लोगों ने सस्ते भाव प्रॉपर्टी खरीदी और गैैंग को उसका हिस्सा निपटाया। निवेश कांड के बाद ग्रुप के डायरेक्टर्स पर शिकंजा कसा था। जालंधर के थाना 2 में हाई लेवल जांच के बाद केस भी दर्ज हुआ जिसमें कपूरथला के वर्तमान एसएसपी सतिंदर पाल सिंह के पिता एवं जालंधर के पूर्व एसएसपी लेट स्वर्ण सिंह को भी नामजद किया गया था जो न जाने उस समय सरकारी अफसर रहते कैसे स्याल ग्रुप के डायरेक्टर थे। हालांकि उनको रिजाइन कर दिए जाने की वजह से राहत भी दे दी गयी थी। बहरहाल, इस मामले में देर से मिला इंसाफ कहा जाये तो गलत न होगा क्योंकि अब तक निवेशक पुलिस अफसर के खेल के कारण पूरी तरह लुट चुके है और ग्रुप के नाम की जमीनों को बेचकर खत्म किया जा चुका है।