"एक अंपजीकृत वाहन पर अपने दूसरे वाहन के पंजीकृत नंबर को लगाना न तो धोखा है और न ही जालसाजी"।
इससे जुड़े एक क्रिमिनल केस का निपटारा करते हुए बॉम्बे हाइकोर्ट ने कहा है कि यह अभियोजन का मामला नहीं था कि पंजीकरण की नंबर प्लेट नकली थी या काल्पनिक रूप से बनाई गई थी या वह अस्तित्व में ही नहीं थी। ऐसी सूरत में सिर्फ ट्रैफिक चालान ही किया जाना बनता था। इस व्यवस्था के साथ बॉम्बे हाईकोर्ट ने पिछले दिनों ही महेश हवेवाला को राहत दी है, जिस पर भारतीय दंड संहिता की धारा 420 व 465 के तहत मामला बनाया गया था।
महेश का एक ऐसी कार चलाते हुए पकड़ा गया था, जो पंजीकृत नहीं थी और उसने इस कार पर अपनी पुरानी कार की नंबर प्लेट लगा रखी थी। जस्टिस रंजीत मोर और जस्टिस भारती डांगरे की पीठ ने अभियोजन पक्ष के उस दावे को स्वीकार करने से इंकार कर दिया और माना कि यह मोटर वाहन अधिनियम के तहत किया गया अपराध था।
दरअसल, ट्रैफिक कांस्टेबल अबसाहिब मोहिते ने सात फरवरी को एक प्राथमिकी दर्ज करवाई थी। उसने महेश को Nissan Sunny कार चलाते हुए पकड़ा था, जिस पर पुरानी कार की नंबर प्लेट लगी हुई थी। महेश ने इस बात को स्वीकार किया कि उसने यह कार कस्टम विभाग से ली है और अभी पंजीकृत नहीं हुई है। वह इस कार वह अपनी पुरानी कार के पंजीकृत नंबर का प्रयोग कर रहा है। इसी के आधार पर उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 420 व 465 के तहत मामला बनाया गया और थाने के प्रथम श्रेणी न्यायिक दंडाधिकारी के समक्ष आरोप पत्र दायर कर दिया गया, जिसके बाद महेश ने हाईकोर्ट के समक्ष याचिका दायर की।
डिफेंस ने दलील दी कि याचिकाकर्ता ने किसी और की नहीं बल्कि अपने वाहन की नंबर प्लेट सिर्फ और सिर्फ पुलिस जांच की परेशानी से बचने के लिए लगा रखी थी। दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि- ''बिना पंजीकृत करवाए एक वाहन को सार्वजनिक स्थान पर चलाने के मामले में मोटर वाहन अधिनियम के तहत अपराध बनता है, जो अधिनियम की धारा 192 के तहत आता है। इस धारा के तहत बताया गया कि अगर कोई वाहन को पंजीकृत करवाए बिना चलाता है तो उस पर जुर्माना लगाया जा सकता है,जिसकी अधिक्तम राशि पांच हजार रुपए तक हो सकती है।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह अभियोजन का मामला नहीं था कि पंजीकरण की नंबर प्लेट नकली थी या काल्पनिक रूप से बनाई गई थी या वह अस्तित्व में ही नहीं थी। दूसरी तरफ याचिकाकर्ता अपनी अन्य कार के लिए मोटर वाहन अधिनियम के तहत बताई गई प्रक्रिया का पालन करते हुए पंजीकरण नंबर ले चुका है। वहीं मोटर वाहन अधिनियम की धारा 192 के तहत बिना पंजीकृत करवाए वाहन चलाने के मामले में याचिकाकर्ता पर जुर्माना लगाया जा सकता है। " इसी तरह याचिकाकर्ता पर लगाया गया जालसाजी का मामला भी नहीं बनता है क्योंकि उसके द्वारा किया गया कार्य इन धाराओं के तहत बताए गए तथ्यों या सामग्री के तहत नहीं आता है और न ही इनकी शर्तो को पूरा करता है।'' कोर्ट ने पुलिस अधिकारियों को इस बात की अनुमति दे दी है कि वह याचिकाकर्ता के खिलाफ मोटर वाहन अधिनियम की धारा 192 के तहत कार्यवाही कर सकते है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज आपराधिक केस को रद्द कर दिया है।