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"बच्चे के साथ बलात्कार है एक क्रूर अपराध" : दिल्ली हाईकोर्ट

By JNN/New Delhi

Published on 30 Jul, 2019 01:38 PM.

 

दिल्ली उच्च न्यायालय ने बच्ची से बलात्कार के लिए सजा को बरकरार रखते हुए बाल गवाहों द्वारा दिए गए सबूतों की विश्वसनीयता पर कानून की स्थिति को भी दोहराया है। न्यायमूर्ति हरि शंकर की पीठ ने POCSO की धारा 3 के तहत 'भेदन कार्य' की सीमा को भी समझाया और ऐसे स्वभाव के अपराधों के जघन्य चरित्र पर टिप्पणी भी की। वर्तमान मामले में अपीलकर्ता ने पीड़िता को उसकी मां से ले लिया और उसके लिए कपड़े खरीदने के बहाने पकड़ लिया। इसके बाद वह उसे अपने साथ एक घर में ले गया जहां उसने उसके साथ बार-बार बलात्कार किया और यह धमकी भी दी कि यदि वो किसी को इस बारे में बताएगी तो वो उसे खत्म कर देगा। अपीलकर्ता-अभियुक्त के वकील ने यह तर्क दिया था कि चूंकि एमएलसी रिपोर्ट में हाइमन में केवल मामूली चोट का उल्लेख है, इसलिए इसे POCSO अधिनियम की धारा 3 के तहत एक 'भेदन यौन' कार्य कहा जा सकता है। अदालत ने हालांकि इस दावे को खारिज कर दिया और आरोपी के गुप्तांग के हाइमन तक ना पहुंचने की दलील को अस्वीकार कर दिया, जैसा कि POCSO अधिनियम की धारा 3 में निहित है, इसके परिणामस्वरूप भले ही हाइमन बरकरार हो अभियुक्त द्वारा किए गए भेदन से यौन उत्पीड़न के आरोप बरकरार नहीं रहेंगे। अदालत ने रंजीत हजारिका बनाम असम राज्य (1998) 8 SCC 635 में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर भरोसा किया, जो स्पष्ट रूप से उस चोट या हाइमन के टूटने को स्वीकार करता है और यह बताता है कि ये भेदन यौन हमले के कार्य के लिए आवश्यक सहवर्ती नहीं हैं। बाल गवाह की विश्वसनीयता पर अदालत का मतएक बाल गवाह की विश्वसनीयता के मुद्दे पर अदालत ने मार्गदर्शक सिद्धांतों पर ध्यान देने के लिए कई मामलों का हवाला दिया। ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई सजा को बरकरार रखते हुए न्यायमूर्ति हरि शंकर की पीठ ने यह कहा कि बलात्कार हर अवसर पर और बिना किसी अपवाद के, शक्ति का अपराध है ना केवल वासना का, और जब ये एक बच्चे से किया जाता है तो वह एक क्रूर अपराध बन जाता है। कोई भी क्षमादान या दया, जो भी हो, ऐसे कार्य के अपराधी को नहीं दिखाई जा सकती विशेषकर तब जब अपराधी पूर्णत: अपने होशो-हवास में हो और ऐसा कृत्य करे। अदालत ने आईपीसी की धारा 363, 366, 376 (2) (i) और 506 और POCSO अधिनियम की धारा 6 के तहत आरोपी की दोषसिद्धि को बरकरार रखा। अपीलकर्ता आरोपी को 10 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई जिसमें कुल 18,000 रुपये जुर्माना लगाया गया। पीड़िता को भी 5 लाख रुपये मुआवजा दिया गया।

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