Latest News

अगर आप झेल रहे हैं यौन उत्पीड़न का झूठा आरोप तो यह खबर आपके लिए है, पढ़िए

By Rajesh Kapil (JNN Chief)

Published on 01 Jul, 2018 09:30 PM.

नई दिल्ली। केंदीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने यौन उत्पीड़न के झूठे मामलों का सामना कर रहे आरोपियों को अपने बचाव करने की ताकत दी है। एक ताजा फैंसले में आयोग ने व्यवस्था दी है कि अगर दोषी अपने बचाव के लिए कोई सूचना प्राप्त करना चाहता है तो यह उसका मानवाधिकार है। एक नागरिक और एक आरोपी के रूप में उसको आरटीआई अधिनियम के तहत ऐसा करने का अधिकार है। साथ ही सीआईसी ने सूचना देने से इनकार करने पर पीआईओ पर 25 हजार रुपए का जुर्माना लगाया और उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का आदेश भी दिया है। सीआईसी ने एक अपील की सुनवाई के बाद यह जजमेंट पास की। अपील एक ऐसे व्यक्ति ने दायर की थी जिसके खिलाफ यौन उत्पीड़न के एक मामले की जांच चल रही थी। आरोपी अपीलकर्ता ने 15 बिन्दुओं पर सूचनाएं माँगी थी जिनमें उन नामित लोगों के बयान की कॉपी भी शामिल थी जो सीआईसी ने प्रारम्भिक जांच के दौरान हस्तगत किये थे। इसके अलावा आतंरिक शिकायत समिति (आईसीसी) के अध्यक्ष और एक अधिकारी के बीच हुए पत्र व्यवहार की कॉपी भी माँगी गई थी। सीपीआईओ ने उनको मांगी गई सूचनाएं नहीं दीं लेकिन तीन दस्तावेज दिए जिनका आवेदित सूचनाओं से कोई संबंध नहीं है। आयोग को आश्चर्य इस बात पर हुआ कि सीपीआईओ ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीडन अधिनियम, 2013 के तहत सूचना नहीं दी जो कि मीडिया को यौन उत्पीडन की शिकार महिला की पहचान और उसका पता छापने से रोकता है। याचिकाकर्ता ने सीआईसी में अपील की और कहा कि एक एक ऐसे आरोपी के रूप में जिसके खिलाफ चार्जशीट दाखिल की जा चुकी है, स्वाभाविक न्याय का तकाजा यह है कि इस मामले की जांच से जुड़े सभी दस्तावेजों की प्रमाणित प्रति उसको दी जाए जिसमें गवाहों के बयानों की कॉपी भी शामिल है ताकि वह अपना बचाव प्रभावशाली ढंग से कर पाए। सीआईसी ने कहा कि सीपीआईओ इस पर कोई सफाई नहीं दे सका कि इस मामले में इन क्लॉज़ का प्रयोग कैसे हो सकता है। जाहिर है कि उसने अपनी सोच पर भरोसा नहीं किया। गवाहों के बयानों को “ट्रेड सीक्रेट” कैसे कहा जा सकता है? यह पूरी तरह बकवास है। “यौन उत्पीडन का आरोप बहुत ही गंभीर आरोप है और अगर यह झूठा है और अगर इसे आरोपी को सूचना देने से रोककर अगर साबित किया जा सकता है तो इससे आरोपी का करियर बर्बाद हो सकता है, उसकी प्रतिष्ठा को हमेशा के लिए नुकसान पहुँच सकता है और उसकी पत्नी और बच्चे के साथ उसके संबंध बिगड़ सकते हैं और उसका गृहस्थ जीवन तबाह हो सकता है। सीआईसी ने मनेका गाँधी बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सन्दर्भ देते हुए कहा अनुच्छेद 21 के तहत जीने का अधिकार न केवल एक भौतिक अधिकार है बल्कि गरिमा पूर्वक जीने का अधिकार भी देता है।

Reader Reviews

Please take a moment to review your experience with us. Your feedback not only help us, it helps other potential readers.


Before you post a review, please login first. Login
Related News
ताज़ा खबर
e-Paper

Readership: 295663