ALIGARH MUSLIM UNIVERSITY अल्पससंख्यक दर्जे की हकदार है. शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुना दिया. कोर्ट की 7 जजों की बेंच ने 4-3 के बहुमत से यह फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट का कहना है, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी भारत के संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक दर्जे (MINORITY STATUS) की हकदार है. खास बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने 57 साल पहले 1967 में एस अजीज बाशा Vs यूनियन ऑफ इंडिया केस में दिए अपने ही फैसले को रद्द कर दिया है.उस फैसले में कहा गया था कि ALIGARH MUSLIM UNIVERSITY अल्पसंख्यक संस्थान के दर्जे का दावा नहीं कर सकती. हालांकि, साल 2005 में AMU ने खुद को अल्पसंख्यक संस्थान मानते हुए मेडिकल के पीजी कोर्सेस में 50 फीसदी सीटें मुस्लिम छात्रों के लिए रिजर्व कर दीं तो इसके खिलाफ हिन्दू छात्र इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचे. 2006 हाईकोर्ट ने अपने फैसले में एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान नहीं माना. इस फैसले के बाद AMU सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और साल 2019 में यह मामला 7 जजों की संवैधानिक बेंच को भेजा गया.
अब बेंच ने फैसला सुनाया है कि AMU का अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा बरकरार रहेगा. दिलचस्प बात रही है कि सुप्रीम कोर्ट ने 57 साल पहले सुनाया गया अपना ही फैसला पलट दिया है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने 4:3 के बहुमत से कहा कि 2006 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले की वैधता तय करने के लिए एक नई पीठ गठित करने के लिए मामले के न्यायिक रिकॉर्ड सीजेआई के समक्ष रखे जाने चाहिए. जानिए क्या था 57 साल पुराना वो फैसला, सुप्रीम कोर्ट और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिविर्सिटी ने क्या-क्या तर्क दिए थे? संस्थापक सर सैयद अहमद खान ने भारत में ऑक्सफोर्ड और कैंब्रिज जैसी यूनिवर्सिटी बनाने का सपना देखा और यहीं से अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) की नींव का रास्ता बना. उस दौर में यूनिवर्सिटी बनाने की इजाजत न होने के कारण 9 फरवरी, 1873 में एक कमेटी बनाई जिसने मदरसा बनाने का ऐलान किया और अलीगढ़ में मदरसतुलउलूम मदरसा की नींव रखी गई. रिटायरमेंट के बाद सर सैयद अहमद खान ने मदरसतुलउलूम को मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज में तब्दील किया और वहां अंग्रेजी पढ़ाने लगे. बाद में चंदे के जरिए धनराशि इकट्ठा की और 1920 में इस कॉलेज को अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में बदला.
शुक्रवार को CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने माना कि कोई संस्था अपना अल्पसंख्यक दर्जा केवल इसलिए नहीं खो देगी क्योंकि यह एक क़ानून द्वारा बनाया गया था. बहुमत ने माना कि न्यायालय को यह जांच करनी चाहिए कि विश्वविद्यालय की स्थापना किसने की और इसके पीछे “मंशा” क्या थी. यदि वह जांच अल्पसंख्यक समुदाय की ओर इशारा कर रही है, तो संस्था अनुच्छेद 30 के अनुसार अल्पसंख्यक दर्जे का दावा कर सकती है. इस तथ्यात्मक निर्धारण के लिए, संविधान पीठ ने मामले को नियमित पीठ को सौंप दिया. फिलहाल AMU का अल्पसंख्यक दर्जा बना रहेगा. सुप्रीम कोर्ट ने 5 जजों की संविधान पीठ के अजीज बाशा के फैसले को पलट दिया है. सुप्रीम कोर्ट के 7 जजों की संविधान पीठ में 4-3 के फैसले में यथा-स्थिति रखी है, अल्पसंख्यक दर्जा रहेगा या नहीं, यह नहीं तय किया है. संविधान पीठ के बहुमत के फैसले में अल्पसंख्यक दर्जा, नियम और शर्तें तय करने के लिए 3 जजों की नई बेंच गठित किए जाने को कहा है, जिसका गठन CJI द्वारा बाद में तय किया जाएगा.