जय हिन्द न्यूज/जालंधर
केंद्र सरकार के श्रम एवं रोजगार मंत्रालय अधीनस्थ विश्व का सबसे बड़ा सामाजिक सुरक्षा संगठन कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) के जालंधर स्थित रीजनल आफिस से करप्शन का धुंआ उठा है। एक एक्सपोर्ट हाऊस में हुए प्रावीडैंड फंड घोटाले से जुड़ा रिकार्ड इस आफिस से गायब कर दिया गया है।
दरअसल, स्थानीय अदालत में संबंधित घोटाले की सुनवाई के दौरान गवाहियों का दौर जारी है और अदालत ने घोटाले से जुड़ा रिकार्ड तलब कर रखा है। पता चला है कि पिछली तारीख पर आफिस की ओर से कोर्ट को सूचित किया गया था कि केस से जुड़ा रिकार्ड गायब है और इस बाबत विभागीय जांच की कार्रवाई जारी है।
वहीं, आज भी कोर्ट में रिकार्ड पेश किया जाना था लेकिन नहीं किया। अत: कोर्ट ने घोटाले से संबंधित रिकार्ड को पेश करने के लिए ईपीएफओ आफिस जालंधर को 23.07.2024 को आखिरी मौका दिया है। कोर्ट ने सरकारी गवाही के लिए गवाहों के गैरजमानती वारंट जारी किए हैं।
बता दे कि हैंडटूल उत्पादन फर्म अंबिका फोरजिंग के मालिक और जाने-माने एक्सपोटर ज्ञान प्रकाश भंडारी इस बहुचर्चित प्रावीडैंड फंड घोटाले के मुख्य आरोपी हैं जबकि उनका बेटा सौरभ भंडारी भी केस में नामजद है। दोनों पिता-पुत्र पर उत्पादन यूनिट के गरीब वर्करों की प्रावीडैंड फंड की रकम डकारने का आरोप है।
रिकार्ड मुताबिक साल 2014 में लंबी जांच के बाद ईपीएफओ ने अपनी जांच रिपोर्ट के आधार पर दोनों पिता-पुत्र के खिलाफ सिटी पुलिस को शिकायत दी थी। जांच रिपोर्ट के आधार पर पुलिस थाना लांबडा में दोनों के खिलाफ आईपीसी की धारा 406-409 के तहत मामला दर्ज किया गया था।
बताते हैं कि माननीय हाईकोर्ट में क्वैशिंग पटीशन लंबित होने के कारण यह केस निचली अदालत में लटकता चला आ रहा था। केविड से ठीक पहले हाईकोर्ट ने आरोपी पक्ष की पटीशन खारिज कर दी थी जिसके बाद कोविड आ गया और बीते 2 सालों से सरकारी गवाहियों का दौर जारी है।
अब जबकि गवाहियों का दौर आया और घोटाले से जुड़ा रिकार्ड अदालत ने तलब किया तो ईपीएफओ की प्रवर्तन अधिकारी रूपिंदर कौर ने कोर्ट को बताया कि रिकार्ड गायब है और कहा कि जांच भी चल रही है। हालांकि गवाह रमेश प्रभाकर और अजिंदर पाल सिंह की गवाही हो गई लेकिन रिटायर्ड इंस्पैक्टर सतविंदर सिंह के बेलएबल वारंट जारी किए गए हैं।
उधर, ईपीएफओ आफिस में इस मामले को लेकर खुसर-फुसर का दौर जारी है जबकि आफिस की मजबूत दीवारें चिल्ला-चिल्ला कर खुद कह रही हैं कि रिकार्ड आसमान खा गया या जमीं निगल गई। वैसे ऐसे आफिस से, जहां किसी को बिना इजाजत अंदर जाने नहीं दिया जाता, वहां से रिकार्ड का गुम हो जाना कई बड़े सवाल खड़े कर रहा है।
हैरत की बात यह भी कि आफिस के अंदर से घोटाले का रिकार्ड का गुम जाना और हैडआफिस का इसको गंभीरता से न लेना और महज जांच तक सीमित कर देना अप्रत्यक्ष तौर पर संकेत दे रहा है कि ईपीएफओ में करप्शन पूरे जोरों पर हैं। अब चूंकि रिकार्ड के अभाव में आरोपी पक्ष को लाभ मिलना तय है, ऐसे में संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि इस घोटाले को दबाने और आरोपियों को बचाने के लिए कोई खेल खेला गया हो।
अब देखना शेष होगा कि अगली तारीख पर घोटाले से जुड़ा रिकार्ड पेश न करने पर कोर्ट का क्या रूख रहता है। ईपीएफओ के उच्च अधिकारी इसका क्या संज्ञान लेते हैं। फिलहाल सभी अफसर चुप्पी साधे हैं। फिर भी ईपीएफओ आफिस या इनके बड़े अफसर अपनी सफाई में कोई भी साक्ष्य या अपनी बात रखना चाहे तो संपर्क करें। उनका भी पक्ष प्रकाशित किया जाएगा।