जय हिन्द न्यूज/जालंधर
राज्य सरकार और पुलिस के भरोसे आम जनता हर कारोबार पर विश्वास करके जनसेवाएं हासिल करती हैं। मगर जनता को तब बहुत परेशान होना पड़ता है जब वो सरकारी सिस्टम और सरकारी एजैंसियों से क्लीनचिट लेने वाले चोर-उच्चके और ठग-जालसाजों के शिकार बन जाते हैं और तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।
कनाडा सरकार की ओर से 700 स्टूडैंट्स को डिपोर्ट किए जाने के बाद जय हिन्द न्यूज नैटवर्क की पड़ताल में जब यह सामने आया कि ईजी-वे इमीग्रेशन कंसलटैंसी के संचालक रहे आरोपी ट्रैवल एजैंट ब्रजेश मिश्रा ने सभी स्टूडै्ट्स के साथ ठगी व जालसाजी की है, तो उपरोक्त तथ्य चीख-चीखकर जालंधर पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा कर रहा है।
दरअसल, मीडिया इन्वैस्टीगेशन में यह बात सामने आई है कि आरोपी ब्रजेश मिश्रा अकेला आरोपी नहीं है बल्कि मिश्रा ने विदेश जाने वाले स्टूडैंट्स को ठगने के लिए एक पूरा गैंग बना रखा था। मिश्रा गैंग में वो खुद सरगना था जो दरभंगा (बिहार) के गांव थलवाड़ा, पुलिस स्टेशन अशोक पेपर मिल क्षेत्र का मूल निवासी है जबकि जालंधर के बस स्टैंड जालंधर के निकट एक पॉश कालोनी का कहने वाला प्रशांत कोहली और रामामंडी का राहुल भार्गव शामिल थे।
क्राइम रिकार्ड खंगालने के बाद एक सनसनीखेज तथ्य यह सामने आया है कि आरोपी मिश्रा गैंग के खिलाफ जालंधर सिटी पुलिस ने साल 2013 में शिकंजा कसा था। पुलिस ने गुप्त सूचना के आधार पर स्वत: संज्ञान लेकर मिश्रा गैंग के खिलाफ फर्जी दस्तावेज बनाने के आरोप में थाना 7 में संगीन जुर्म की धाराओं आईपीसी 420, 465, 467 तथा 120-बी के तहत केस दर्ज किया था। चूंकि केस खुद पुलिस ने दर्ज किया था इसलिए सारा खेल पुलिस के हाथ था।
रिकार्ड के मुताबिक पुलिस ने केस में प्रभावित पक्ष के रूप में मंगलदीप सिंह नाम के युवक को रखा था जिसको यू.के भेजने के लिए 7.50 लाख रुपए लेने और फाइल में फर्जी एक्सपीरियंस सर्टीफिकेट बनाकर देने का आरोप मिश्रा गैंग पर लगा था। मगर आवेदन खारिज होने के बाद जालसाजी का खुलासा हुआ था और पुलिस ने सूचना के आधार पर केस दर्ज कर लिया था और संबंधित पक्षों को तलब करके काफी बड़ी कार्रवाई भी की थी।
पुलिस ने जांच के दौरान फास्ट-वे इंगलिश अकैडमी एंड कम्पयूटर सैंटर के संचालक जसपाल सिंह धंजू का बयान लिया था जिसने तस्दीक किया था कि जारी सर्टीफिकेट उनका नहीं है और न उनकी तरफ से जारी है और तस्दीक किया था कि सर्टीफिकेट फर्जी है। वहीं, ब्रिटिश हाई कमीशन की इमीग्रेशन ऑॅफिसर एम.एस. सीमा की ओर से फर्जी दस्तावेज के आधार पर जसपाल सिंह धंजू का वीजा आवेदन खारिज किए जाने बाबत तस्दीकी बयान भी लिए थे।
इसके बाद फिर हुआ वही जिसके लिए पंजाब पुलिस पहले से ही काफी बदनाम है। पहले पुलिस ने मिश्रा गैंग पर शिकंजा कसा और जैसे ही गैंग मैंबरों की जेबें ढीली हुई, पुलिस फाइल भी ढीली हो गई। संभवत: पुलिस के साथ सैटिंग होते ही केस फाइल से वो सारे महत्वपूर्ण जाली दस्तावेज गायब हो गए जिससे मिश्रा गैंग का अपराध साबित होता था। बाकी रही-सही कसर कानूनी नुक्तों की लड़ाई में पूरी हो गई क्योंकि केस की सरकारी पैरवी काफी कमजोर रही।
सुविज्ञ सूत्रों के मुताबिक गैंग को एक बड़े पुलिस अधिकारी का संरक्षण प्राप्त हुआ। उच्च स्तरीय जांच मार्क हुई। फर्जी पीडि़तों को आरोपियों के हक में भुगताया गया। लेन-देन की रस्में भी अदा की गई और सभी आरोपियों के खिलाफ केस को कमजोर कर दिया गया। केस कोर्ट में गया मगर केस फाइल में कमजोर जांच और कमजोर पैरवी के चलते गैंग के तीनों मैंबरों को कोर्ट ने डिस्चार्ज कर दिया।
जानकार बताते हैं कि पुलिस की मेहरबानी होने के बाद मिश्रा गैंग के सारे पाप साल 2015 में धो दिए गए। इतना ही नहीं उसके बाद उनको पुलिस के भ्रष्ट अफसरों से ठगी-जालसाजी व दादगिरि का पूरा लाइसैंस भी प्राप्त हो गया। संभवत: यही कारण रहा कि 2015 से 2018 तक मिश्रा गैंग बस स्टैंड के पास खुलकर खेला और फिर किसी पुलिस वाले ने उनकी तरफ मुंह तक नहीं किया।
जानकारों के मुताबिक ट्रैवल कारोबार पर बढ़ती सख्ती के दौरान तीनों में से एक पार्टनर राहुल भार्गव को 30.08.2019 को नई कंपनी ऐजुकेशन एंड माइग्रेशन सर्विसिज के नाम से लाइसैंसधारक बनाया गया। हालांकि कनाडा जाने वाले आवेदकों के साथ ब्रजेश मिश्रा ही ज्यादा डील करता था और आरोप मुताबिक जिस स्टूडैंट के पास एक्सपीरियंस सर्टीफिकेट नहीं होता, मिश्रा उसे फर्जी तैयार करके उसकी फाइल में लगाता था और उसके बदले आवेदक से मोटी रकम वसूलता था जिसका अब जाकर बड़ा खुलासा हुआ है।
बहरहाल, अब शोर मचने के बाद जिला प्रशासन ने लाइसैंसधारक राहुल भार्गव को कारण बताओ नोटिस जारी कर 20.03.2023 के लिए तलब किया है और तब तक लाइसैंस सस्पैंड कर दिया है। वहीं, पुलिस ने आरोपी फर्म के बारे में इनपुट जुटाने शुरू कर दिए है लेकिन जो बीते समय का रिकार्ड आरोपी फर्म का सामने आया है उससे साफ है कि जालंधर पुलिस की मेहरबानी से यह सारा कांड घटित हुआ है।
अब देखना शेष होगा कि पहले की तरह इस बार भी आरोपी पक्ष इन संगीन आरोपों से खुद को उसी तर्क के आधार पर बचाने में कामयाब होते हैं या नहीं कि जिसमें वो यह तर्क देते हैं कि आवेदन खुद आवेदकों ने दूतावास में दाखिल किया था और वो दस्तावेज उसमें लगाए थे, वो उन्होंने खुद बनाकर पेश किए थे जो कि जांच का विषय है।