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कैप्टन सरकार के एक फैसले से आखिर क्यों बढ़ा विवादित जौहल अस्पताल संचालक और पार्षद का बी.पी., जानिए क्या है यह लॉ एंड ऑर्डर का मामला

By RAJESH KAPIL

Published on 07 Sep, 2021 06:43 PM.

                     जय हिन्द न्यूज/जालंधर

 

करीब 10 साल पहले घटित बहुचर्चित वियना कांड के दौरान दर्ज एक एफआईआर में रोचक मोड़ आया है। वर्ष 2009 के दौरान थाना सदर (अब थाना रामामंडी) में अति विवादित पार्षद मंदीप जस्सल के खिलाफ जौहल अस्पताल के डॉक्टर बी. एस. जौहल की शिकायत पर दर्ज एफआईआर को कैप्टन सरकार ने विशेषाधिकार के तहत रद्द करते हुए कोर्ट में जारी प्रॉसीक्यूशन को वापिस लेने का आदेश जारी किया है।

 

 

 

 

स्थानीय सैशन कोर्ट में विचाराधीन क्रिमिनल ट्रायल के दौरान सरकारी वकील ने सीआर.पी.सी की धारा 321 के तहत एक अर्जी दायर करके पार्षद मंदीप जस्सल के खिलाफ विचाराधीन केस वापिस लेने की पेशकश की है जिस पर कोर्ट ने शिकायतकर्ता डॉक्टर बी.एस. जौहल को अपनी सहमति या आपत्ति पेश करने को कहा है।

 

 

 

 

 

ऐसा बताया जा रहा है कि राज्य सरकार के इस रुख डॉक्टर बी.एस. जौहल जो बीते 2० साल से पार्षद मंदीप जस्सल को सजा दिलाने के लिए ऐढ़ी-चोटी का जोर लगाते आ रहे हैं, उनकी धड़कन को बढ़ा गया है, वहीं दूसरी तरफ सरकारी फैसले के बाद राहत की सांस ले रहे आरोपी पार्षद मंदीप जस्सल के दिल की धड़कन भी ट्रायल कोर्ट के अगले फैसले तक तेज रहने की प्रबलता है।

 

 

 

 

 

 

फिलहाल आरोपी पार्षद मंदीप जस्सल के सीआर.पी.सी की धारा 313 के तहत फाइनल बहस से पहले होने वाले बयान दर्ज करके केस की सुनवाई फिलहाल स्थगित कर दी गई है। शिकायतकर्ता के वकील सरदार दर्शन सिंह दयाल का कहना है कि उनके क्लाइंट का पक्ष जल्द कोर्ट के समक्ष पेश कर दिया जाएगा। मंगलवार को सुनवाई के बाद जहां आरोपी पार्षद मंदीप जस्सल के चेहरे की रौनक गायब दिखी, वहीं बताया गया कि डॉक्टर बी. एस. जौहल भी राज्य सरकार के इस फैसले को लेकर काफी हतप्रदता में हैं।

 

 

 

 

 

खास बात यह कि ईगो प्राब्लब से पनपे विवाद के चलते दर्ज हुई इस एफआईआर को लेकर एक लंबी जांच चली। दशक बाद मामला कोर्ट में सुनवाई के लिए प्रस्तुत किया गया और करीब बीस साल बाद इस रोचक मामले में जब सजा/बरी का समय आया तो उससे ठीक पहले राज्य सरकार ने इसकी पैरवी को वापिस लेने का फैसला सुना दिया।

 

 

 

 

 

कानूनविदों की माने तो ऐसी सूरत में भले ही राज्य सरकार ने आरोपी पार्षद मंदीप जस्सल के खिलाफ विचाराधीन केस को अपनी शक्यितों के तहत वापिस लेने का फैसला जारी कर दिया है लेकिन दोनों पक्षों को सुनने के बाद अंतिम फैसला ट्रायल कोर्ट पर निर्भर करता है। अत: देखना शेष होगा कि ट्रायल कोर्ट इस मामले में अपना क्या रुख अपनाती है।

 

 

 

 

            क्या है मामला

साल 2009 के दौरान मई महीने की 24 तारीख को वियना (आस्ट्रिया) में होली संत श्री रामानंद जी की नृशंस हत्या कर दी गई। घटना की सूचना मिलते ही विश्व भर में शोक की लहर के साथ-साथ उनके अनुयायियों में आक्रोश फैल गया। पार्षद मंदीप जस्सल भी उस आक्रोशित लहर के नेतृत्व में शामिल हुए। विरोध-प्रदर्शन के दौरान कानून तोड़ने को लेकर पुलिस ने छह अलग एफआईआर दर्ज की। इनमें से 125/2009 थाना सदर (अब क्षेत्र रामामंडी) में मंदीप जस्सल के खिलाफ दर्ज की गई।

 

              क्या है केस की ताजा स्थिति

एक लंबी जांच के बाद यह केस कोर्ट में आया जहां रिटा. इंस्पैक्टर सौदागर सिंह व अश्विनी कुमार समेत 10 पुलिस अफसर सरकारी गवाही से पलट चुके हैं। एक राजनीतिक घटनाक्रम के चलते 12.07.2021 को पंजाब सरकार ने एक पत्र जारी करके केस न चलाने का फैसला जारी किया। इस जारी पत्र में केस वापिस लेने का कारण भी दिया गया कि आरोपी के खिलाफ केस चलाने से समाज के एक वर्ग विशेष में आक्रोश बढ़ सकता है जिससे पुन: अमन-कानून की स्थिति बिगड़ सकती है। अंतत: इस आधार पर अभियोजन पक्ष ने गत दिवस केस वापिस लेने के लिए कोर्ट में अर्जी दायर की। 

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