Latest News

कोरोना lockdown में पनपे स्कूल फीस मुद्दे पर आया सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैंसला, स्कूलों को लगी फटकार, फीस घटाने का भी दिया आदेश, पढ़िए विस्तार समाचार

By RAJESH KAPIL

Published on 04 May, 2021 05:28 PM.

जय हिन्द न्यूज/ नई दिल्ली।

 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि निजी स्कूलों द्बारा लॉकडाउन दौरान छात्रों ने स्कूल गतिविधियों और सुविधाओं का उपयोग नहीं करने पर भी फीस की मांग करना 'मुनाफाखोरी' और 'व्यावसायीकरण' है।

 

 

 

 

 

 

कोर्ट ने इस तथ्य ध्यान दिया कि पिछले शैक्षणिक वर्ष दौरान कक्षाएं ऑनलाइन की गई। इससे देखते हुए शीर्ष कोर्ट ने कहा कि कोर्ट ने आगे कहा कि, ’’हम यह मानते हैं कि स्कूल प्रबंधन की स्कूल द्बारा निर्धारित वार्षिक स्कूल फीस का लगभग 15 प्रतिशत बचत हुई होगी। इसलिए गैर-मान्यता प्राप्त निजी स्कूलों के फीस में 15 प्रतिशत कटौती करने का आदेश दिया गया है।

 

 

 

 

 

 

 

 

शैक्षणिक संस्थान शिक्षा प्रदान करने और चैरिटेबल का काम कर रहे हैं। उन्हें स्वेच्छा से और लगातार फीस कम करनी चाहिए। कोर्ट ने इस संबंध में टीएमए पाई, पीए इनामदार और अन्य मामलों में सुनाए फैसले को देखते हुए कहा कि शिक्षण संस्थानों द्बारा ली जाने वाली फीस उनकी सेवाओं के लिए अनिवार्य होने चाहिए और वे मुनाफाखोरी या व्यावसायीकरण में लिप्त नहीं हो सकते।

 

 

 

 

 

 

 

एक निजी संस्थान को अपनी स्वयं की फीस तय करने की स्वायत्तता तब तक है जब तक कि उसका परिणाम मुनाफाखोरी और व्यावसायीकरण नहीं होता है और इस हद तक राज्य के पास नियम लागू करने की शक्ति है। कोर्ट ने कहा कि अनुमेय सीमा से अधिक फीस वसूलना मुनाफाखोरी और व्यावसायीकरण का परिणाम होगा।

 

 

 

 

 

 

 

 

जस्टिस एएम खानविल्कर और जस्टिस दिनेश माहेश्वरी की खंडपीठ ने इंडियन स्कूल, जोधपुर बनाम राजस्थान राज्य और अन्य मामले में यह फैसला सुनाया। पीठ राजस्थान सरकार के उस आदेश को चुनौती देने वाली अपीलों के एक बैच पर सुनवाई कर रही थी, जिसने राज्य के सीबीएसई स्कूलों को केवल 70% और राज्य बोर्ड स्कूलों को स्कूल फीस का मात्र 60% इकट्ठा करने की वार्षिक अनुमति दी गई थी।

 

 

सुप्रीम कोर्ट ने स्कूलों को निर्देश दिया कि शैक्षणिक वर्ष के दौरान छात्रों द्बारा सुविधाओं का उपयोग नहीं किए जाने के एवज में फीस में 15 प्रतिशत की कटौती करें। कोर्ट ने फीस भुगतान के लिए छह मासिक किस्तों की अनुमति दी है।

 

 

 

 

 

 

निर्णय में की गई प्रासंगिक टिप्पणियां (पैराग्राफ 116 और 117) निम्नलिखित हैं;

 

 

 

 

कोर्ट ने कहा कि, ’’कानून के तहत स्कूल प्रबंधन द्बारा इस महामारी के बीच छात्रों से उन गतिविधियों और सुविधाओं के संबंध में फीस जमा करने के लिए नहीं कहा जा सकता, जिन सुविधाओं का उपयोग छात्रों द्बारा नहीं किया जा रहा है या प्रदान नहीं किया गया है। इसके साथ ही मुनाफाखोरी और व्यावसायीकरण में लिप्त नहीं होना चाहिए। इसके लिए न्यायिक नोटिस भी जारी किया जा सकता है, क्योंकि पूर्ण लॉकडाउन के कारण स्कूलों को शैक्षणिक वर्ष 2020-21 के दौरान लंबे समय तक खोलने की अनुमति नहीं दी गई थी। स्कूल प्रबंधन ने लागत को बचाया होगा जैसे कि पेट्रोल / डीजल, बिजली, रखरखाव लागत, पानी फीस, 12० स्टेशनरी शुल्क आदि। संबंधित अवधि के दौरान छात्रों को ऐसी सुविधाएं प्रदान किए बिना स्कूल चलाया गया। सटीक (तथ्यात्मक) अनुभवजन्य डेटा को इस तरह से बचत के बारे में दोनों ओर से सुसज्जित किया गया है कि स्कूल प्रबंधन द्बारा व्युत्पन्न या लाभ किया जा सकता है। गणितीय सटीकता दृष्टिकोण के बिना हम मानेंगे कि स्कूल प्रबंधन ने स्कूल द्बारा निर्धारित वार्षिक स्कूल फीस का लगभग 15 प्रतिशत बचाया होगा।

 

 

 

 

कोर्ट ने आगे कहा कि हम यह मानते हैं कि स्कूल प्रबंधन की स्कूल द्बारा निर्धारित वार्षिक स्कूल फीस का लगभग 15 प्रतिशत बचत हुई होगी। इसलिए गैर-मान्यता प्राप्त निजी स्कूलों के फीस में 15 प्रतिशत कटौती करने का आदेश दिया गया है। शैक्षणिक संस्थान शिक्षा प्रदान करने और चैरिटेबल का काम कर रहे हैं। उन्हें ऐसा स्वेच्छा से और लगातार करना चाहिए। इसलिए स्कूल प्रबंधन द्बारा अधिक फीस लेने पर (अकादमिक वर्ष 2020-21 के लिए वार्षिक स्कूल फीस का 15 प्रतिशत) मुनाफाखोरी और व्यावसायीकरण का मामला होगा। स्कूलों को छात्रों और अभिभावकों के सामने आने वाली कठिनाइयों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए।

 

 

 

 

 

 

कोर्ट ने कहा कि स्कूल प्रबंधन से शिक्षा प्रदान करने के क्षेत्र में चैरिटेबल कार्य करने की अपेक्षा की जाती है। उससे इस स्थिति के प्रति संवेदनशील रहने की उम्मीद की जाती है और छात्रों और उनके माता-पिता के कष्ट को कम करने के लिए आवश्यक उपचारात्मक उपाय किए जाने की उम्मीद की जाती है। स्कूल प्रबंधन के लिए स्कूल फीस का पुनर्निर्धारित भुगतान इस तरह से है कि एक भी छात्र को उसकी शिक्षा के अवसर से वंचित नहीं किया जाना चाहिए और साथ ही ’’जियो और जीने दो’’ की मान्यता का बरकरार रखना चाहिए।

 

 

 

 

 

 

 

कोर्ट ने स्कूलों को वार्षिक फीस का 85% लेने की अनुमति देते हुए निर्देश दिया कि स्कूल प्रबंधन किसी भी छात्र को फीस के गैर-भुगतान, बकाया राशि/बकाया किस्तों के लिए ऑनलाइन कक्षाओं या फिजिकल कक्षाओं में बैठने से मना नहीं करेगा और इसके साथ ही फीस के बकाया होने पर परीक्षा के रिजल्ट को जारी करने से रोका नहीं जाएगा। यदि माता-पिता को उपरोक्त वर्ष में शैक्षणिक वर्ष 2020-21 के लिए वार्षिक फीस भरने में परेशानी हो रही हो तो स्कूल प्रबंधन इस तरह के प्रतिनिधित्व के मामले पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करना चाहिए। स्कूल प्रबंधन शैक्षणिक वर्ष 2020-21 के लिए कक्षा 10 और 12वीं के लिए आगामी बोर्ड परीक्षाओं के लिए किसी भी छात्र/उम्मीदवार को फीस न भरने पर परीक्षा देने से नहीं रोका जा सकता है। 

Reader Reviews

Please take a moment to review your experience with us. Your feedback not only help us, it helps other potential readers.


Before you post a review, please login first. Login
Related News
ताज़ा खबर
e-Paper

Readership: 295663