कांग्रेस को झटका, गुजरात की दोनों राज्यसभा सीटों पर अलग-अलग होंगे चुनाव
नई दिल्ली : गुजरात की दो राज्यसभा सीटों पर एक साथ चुनाव की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट गई कांग्रेस को झटका लगा है। कोर्ट ने मामले में दखल देने से साफ इनकार कर दिया। आयोग को दोनों सीटों पर अलग-अलग चुनाव कराने को हरी झंडी दी है। अमित शाह और स्मृति इरानी के लोकसभा सदस्य बनने के बाद खाली हुईं दोनों सीटों के लिए 5 जुलाई को वोटिंग होगी। दोनों सीटों पर चुनाव अलग-अलग हो रहे हैं, लिहाजा विधायक एक बार में ही दोनों सीटों के लिए वोट नहीं डाल पाएंगे। इस फैसले को गुजरात कांग्रेस के नेता परेश भाई धनानी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। बीजेपी ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर और ओबीसी नेता जुगलजी ठाकोर को अपना उम्मीदवार बनाया है। आज नॉमिनेशन की आखिरी तारीख है। गुजरात विधानसभा में बीजेपी के 100 विधायक हैं, जबकि कांग्रेस के 77। यहां राज्यसभा सीट जीतने के लिए किसी उम्मीदवार को 61 वोटों की जरूरत होगी। अगर दोनों रिक्तियों को भरने के लिए एक साथ चुनाव होते और विधायक सिर्फ एक बार में वोट देते तो कांग्रेस के पास एक सीट जीतने का मौका होता, लेकिन अब दोनों सीटों के लिए अलग-अलग वोटिंग होगी, जिसमें बीजेपी दोनों सीटों को जीत सकती है क्योंकि विधानसभा में उसका बहुमत है। इससे पहले 2017 में कांग्रेस को गुजरात में राज्यसभा चुनाव के दौरान काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था, क्योंकि बीजेपी ने उसके विधायकों के बीच जबरदस्त सेंधमारी की थी। अहमद पटेल चुनाव भले जीत गए लेकिन इसके लिए कांग्रेस को अपने विधायकों को कर्नाटक के रिजॉर्ट में सुरक्षित रखना पड़ा था। अगर कांग्रेस के एक बागी विधायक का वोट रद्द नहीं हुआ होता तो अहमद पटेल चुनाव हार गए होते। राज्यसभा की सीटें दोनों ही पार्टियों के लिए काफी अहम हैं, खासकर महत्वपूर्ण विधेयकों पर वोटिंग के समय। बता दें कि चुनाव आयोग ने राज्यसभा की खाली हुई 6 सीटों (गुजरात की 2) पर 5 जुलाई को चुनाव कराने की घोषणा की है। चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया कि राज्यसभा सहित दोनों सदनों की सभी रिक्तियों पर उपचुनाव के लिए उन्हें ‘अलग-अलग रिक्तियां’ माना जाएगा और अलग-अलग अधिसूचना जारी की जाएगी। चुनाव भी अलग-अलग होंगे। हालांकि इनका कार्यक्रम समान हो सकता है। चुनाव आयोग ने दिल्ली हाई कोर्ट के 1994 और 2009 के 2 फैसलों का भी जिक्र किया है, जो उसके फैसले का समर्थन करते हैं। कांग्रेस की दलील थी कि हाई कोर्ट के फैसले इस मामले में लागू नहीं होते क्योंकि वे अलग-अलग वर्षों (1989 और 1990) में खाली हुईं 2 सीटों से जुड़े थे और उनका कार्यकाल अलग-अलग समय पर खत्म हुआ था, जबकि मौजूदा मामले में दोनों ही सीटें एक साथ खाली हो रही हैं।