इस एक्ट के तहत मदरसों को सरकारी मान्यता प्राप्त करने के लिए कुछ आवश्यकताओं का पालन करना पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने मदरसों की स्थिति को स्पष्ट किया है और इससे संबंधित विवादों को सुलझाने में मदद मिलेगी। पिछली सुनवाई के दौरान, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) ने कहा था, "जियो और जीने दो," जिससे यह स्पष्ट होता है कि अदालत का उद्देश्य सभी समुदायों के अधिकारों का सम्मान करना और उनके विकास के लिए एक समावेशी दृष्टिकोण अपनाना है। इस फैसले के माध्यम से, सुप्रीम कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया है कि सभी शैक्षणिक संस्थान एक समान मानकों का पालन करें और शिक्षा प्रणाली में सुधार लाने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएं। दरअसल, उत्तर प्रदेश मदरसा कानून को असांविधानिक बताने वाले इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को फैसला सुनाया। कोर्ट ने इस कानून को पूरी तरह से वैध करार दिया है।कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए कानून को मान्यता दे दी है। इससे पहले मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने 22 अक्तूबर को हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 22 मार्च के अपने फैसले में कानून को संविधान के खिलाफ और धर्मनिरक्षेता के सिद्धांत के खिलाफ बताया था। हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से मदरसा में शिक्षा ग्रहण कर रहे छात्रों को नियमित स्कूलों में दाखिला देने का निर्देश दिया था। मदरसों में पढ़ने वाले 17 लाख से अधिक छात्रों को राहत देते हुए सीजेआई की अध्यक्षता वाली पीठ ने 5 अप्रैल को हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी थी, जिसमें उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को रद्द कर दिया गया था। सुनवाई के दौरान सीजेआई ने कहा था कि मदरसों का नियमित करना राष्ट्रीय हित में है।