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*Media के बाद जालंधर ग्रामीण पुलिस के SSP मुखविंदर सिंह भुल्लर से नाराज हुई HighCourt, अवमानना का दोषी ठहराने से पहले जारी किया कारण बताओ नोटिस, पढ़िए लापरवाह पुलिस की दास्ताँ*

By RAJESH KAPIL,EDITOR-IN-CHIEF

Published on 16 Jul, 2023 11:27 AM.

 

              जय हिन्द न्यूज रिपोर्ट/चंडीगढ़


"क्रिस्टल क्लियर" मामलों में भी समय पर इंसाफ न देने और ऐसे मामलों में पीड़ितों की याचिका पर ज़वाब दाखिल करने में देरी करने पर माननीय पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने जालंधर ग्रामीण पुलिस के प्रति कड़ा संज्ञान लिया है। मीडिया के बाद उच्च अदालत के भी नाराज होने से SSP के लिए पद पर बनाए रखने को लेकर राज्य सरकार भी विचार करने को मजबूर बतायी जा रही है। फ़िलहाल ताजा मामले को लेकर पुलिस महकमे में खलबली मच गई है।

 

 

माननीय हाईकोर्ट के जज Mr. Justice Sandeep Maudgil पर आधारित बेंच ने एक मामले में ही नहीं ब्लकि बीते काफी मामलों की सुनवाई में उच्चतम कोर्ट के प्रति जानबूझकर लापरवाही/कोताही/उदासीनता/अनदेखी और तरजीह न दिए जाने वाले रवैये को महसूस किया पाया। बेंच ने पाया कि SSP हाई कोर्ट को हल्के में ले रहें हैं। ठीक ऐसा ही रवैया SSP का मीडिया के साथ चला आ रहा है कि वो अन्याय मामलों में अपना पक्ष देने से कन्नी काटते चले आ रहे थे।

 

 

 


अतः ताजा लंबित मामले में याची को राहत देते हुए माननीय बेंच ने संज्ञान स्वरूप तल्ख टिप्पणी के साथ जालंधर ग्रामीण पुलिस के SSP मुखविंदर सिंह भुल्लर को अवमानना का दोषी ठहराने से पहले कारण बताओ नोटिस जारी किया है और पूछा है कि क्यों न उन पर Contempt का चार्ज लगाया जाए ?

 

 

दरअसल, जालंधर ग्रामीण पुलिस की नकोदर सब डिविजन से जुड़े मामले को लेकर दायर जमानत याचिका को मंजूर करते हुए बेंच ने ऑर्डर में जालंधर ग्रामीण पुलिस की कार्यप्रणाली और भूमिका पर सवाल उठाते हुए काफी संदेह जताते हुए खुद SSP को अदालत के कटघरे में खड़े करने लायक पाया है।

 

 


माननीय बेंच ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि जिस याची को आज राहत प्रदान की गयी, उसको पुलिस ने अपने बेवजह के चक्रव्यूह में उलझा कर तीन याचिका लगाने के लिए मजबूर किया गया जबकि यह काम पुलिस अपने स्तर पर आसानी से कर सकती थी।

 

 

 

सुनवाई के दौरान यह तथ्य भी बेंच के समक्ष आया कि याचिका के आधार पर जो जांच रिपोर्ट आधारित एक ऐफिडेविट सब डिविजन के DSP ने litigation ब्रांच को भेजा, उसको समय सीमा के तहत बेंच के समक्ष दाखिल नहीं किया गया। इतना ही नहीं जब पूछा गया तो एक दूसरे पर गाज गिराने लग गए।

 

 

 

यही नहीं, ऐसा करके आरोपी SSP ने जहाँ अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह नहीं किया, वहीँ ऐसा करके SSP ने बेंच की मर्यादा की न केवल अनदेखी की ब्लकि माननीय कोर्ट की गरिमा को ठेस भी पहुंचाई जिसके लिए उनको दंड दिया जाना बनता है ताकि बाकी अफसरों को भी सबक मिले। अब देखना शेष होगा कि SSP के ज़वाब दाखिल करने पर माफी मिलती है या दंड।

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