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एडवोकेट से लिखवाकर रजिस्टर्ड करवाया गलत वसीका, सब-रजिस्ट्रार ने भी फिर "कडवाईयां चीकां", पढि़ए कैसे

By RAJESH KAPIL

Published on 02 Dec, 2021 12:15 PM.

            जय हिन्द न्यूज/जालंधर

 

भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी के केन्द्र बिंदु स्थानीय तहसील से फ्राड का एक नए तरह का मामला सामने आया है। मजे की बात यह कि फ्राड के इस नए ढंग ने वसीका रजिस्टर्ड करने वाले सब-रजिस्ट्रार को भी सकते में डाल दिया।

 

 

 

 

जानकारी मिली है कि उक्त कांड को लेकर सिटी पुलिस ने थाना नवीं बारादरी में  133 किला मोहल्ला जालंधर निवासी राकेश कुमार चड्डा पुत्र चन्द्र किशोर चड्डा के खिलाफ फर्जी दस्तावेजों के सहारे सरकारी दस्तावेज रजिस्टर्ड करवाने के आरोप में आईपीसी की धारा 420, 465, 467, 468, 471 के तहत एफआईआर दर्ज कर आरोपी राकेश कुमार चड्डा की तलाश में छापेमारी शुरू कर दी है जबकि एडवोकेट ओमप्रकाश की भूमिका की जांच को पैडिंग रखा गया है। ASI मनोहर लाल ने कहा कि आरोपी के संभावित ठिकानों का पता लगाया जा रहा है।

 

 

 

 

दरअसल, हुआ यह है कि आरोपी राकेश कुमार चड्डा ने तहसील काम्पलैक्स में बैठे एक एडवोकेट ओमप्रकाश से एक वसीका जिसमें अटैच किए बेसिक दस्तावेज का जिक्र किए बिना ड्राफ्ट करवाकर उसे सब-रजिस्ट्रार से दिनाक 25.03.2021 को वसीका नंबर 11106 रजिस्टर्ड करवाया लिया था।

 

 

 

यह वसीका 133 किला मोहल्ला जालंधर निवासी राकेश कुमार चड्डा पुत्र चन्द्र किशोर चड्डा ने अटारी बाजार स्थित रकबा एक मरला 33 वर्ग फुट की एक दुकान जिसकी हदें पूर्व में जग्गी दी हट्टी है, पश्चिम में गली, उत्तर में मेन बाजार तथा दक्षिण दिशा में तूतीयां मंदिर स्थित है, को दिनाक 14.10.1995 के एक लिखित एग्रीमैंट नंबर 7225 के आधार पर अपनी पत्नी सीमा चड्डा के नाम पर रजिस्टर्ड करवाया था।

 

 

 

 

तहसील में सुनने को मिली खुसर-फुसर के मुताबिक उक्त आरोपी ने उसे तहसील में जारी बरसों पुरानी प्रथा के चलते वसीका रजिस्टर्ड करवाने के दौरान काफी लोगों की आंखों पर गुलाबी कागजों से पर्दा भी डाले रखा जिससे किसी को भी कानों-कान खबर न हुई और वसीका सरकारी रिकार्ड में अपलोड कर लिया गया लेकिन कुछ दिन बाद खबरी सब-रजिस्ट्रार के पास दबे पांव दस्तक दी और उनके कान में सारा कांड डाउनलोड कर गया।

 

 

 

 

चूंकि संभवत: उक्त शातिर के इस खेल में सब-रजिस्ट्रार मनिंदर सिंह सिद्धू शामिल न थे, तो उन्होंने जिला प्रशासन स्तर पर इसकी जांच शुरू की तो क्रास वैरीफिकेशन में सारा भेद खुल गया और फ्राड के इस खेल की सारी तस्वीर उनको साफ हो गई और शिकायत सिटी पुलिस कमिश्नर को रैफर करके एक्शन की सिफारिश की।

 

 

 

 

 

बताया जा रहा है कि वसीका रजिस्टर्ड होने के बाद ध्यान में आने पर सब-रजिस्ट्रार की ओर से दायर की गई शिकायत में पुलिस कमिश्नर जालंधर को बताया गया है कि उक्त वसीका को तहसील में बैठे एक एडवोकेट ओम प्रकाश ने ड्राफ्ट किया था तथा एक सोची-समझी साजिश के तहत इसका विस्तार ड्राफ्ट में नहीं दिया।

 

 

 

 

सब-रजिस्ट्रार की शिकायत में यह भी बताया गया है कि जब नए दर्ज वसीका की कापी तथा पेश किए साल 1995 के एग्रीमैंट की कापी एचआरसी विंग को वैरीफिकेशन के लिए भेजी गई तो वहां से रिपोर्ट आई कि साल 1995 वाला एग्रीमैंट जालंधर के गांव सुभाना की प्रापर्टी से संबंधित है और यह एग्रीमैंट सुखपाल सिंह पुत्र हरबंस सिंह की प्रापर्टी से जुड़ा है जो कि हरजिंदर सिंह पुत्र बलबंत सिंह पुत्र महा सिंह के नाम पर तस्दीक करवाया गया था।

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