नई दिल्ली। मल्टीपल चैक केसों का मजे से सामना कर रहे "बत्तरे बकील" जैसों के लिए बुरा दौर शुरू होने जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट से खबर आई है कि देश में चैक बाऊंस के करीब 35 लाख केस लंबित होने को पहले 'अजीबो-गरीब' करार देने वाले उच्चतम न्यायालय ने इन मामलों के जल्द निस्तारण के लिए शुक्रवार को कई निर्देश जारी किए।
शीर्ष अदालत ने देश के सभी उच्च न्यायालयों को चैक बाऊंस के मामलों से निपटने के लिए निचली अदालतों को निर्देश देने को कहा। प्रधान न्यायाधीश एस.ए. बोबडे की अगुवाई वाली 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि
"चैक बाऊंस के मामलों में साक्ष्यों को अब हलफनामा दायर कर प्रस्तुत किया जा सकता है और गवाहों को बुलाकर जांच करने की जरूरत नहीं होगी"
पीठ ने केंद्र से परक्राम्य लिखित अधिनियम (नैगोशिएबल इंस्ट्रमैंट्स एक्ट) में उचित संशोधन करने को कहीं ताकि एक व्यक्ति के खिलाफ एक साल के भीतर दर्ज कराए चैक बाऊंस के मामलों में सभी मुकद्दमों को साथ जोड़कर एक मुकद्दमा चलाया जा सके।
शीर्ष अदालत ने अपने पुराने फैसले को दोहराया और कहा कि निचली अदालतों के पास चैक बाऊंस मामले में मुकद्दमे का सामना करने के लिए व्यक्तियों को तलब करने के फैसले पर पुनर्विचार करने की स्वाभाविक शक्तियां नहीं हैं।
न्यायालय ने कहा कि जिन मामलों का निपटारा उसने नहीं किया है, उस पर बॉम्बे उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश आर.सी. चव्हाण की अध्यक्षता वाली करने को कहा समिति विचार करेगी।
शीर्ष अदालत ने 10 मार्च को इस समिति का गठन किया था और देश भर में चैक बाऊंस के मामलों के जल्द निस्तारण के लिए उठाए गए कदमों पर 3 माह के भीतर एक रिपोर्ट मांगी थी।
न्यायालय ने कहा कि 3 न्यायाधीशों की पीठ 8 हफ्तों के बाद चैक बाऊंस के मामलों का जल्द निस्तारण सुनिश्चित करने पर अब स्वत: संज्ञान लेगी।