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पंजाब: "आपहुदरी" करके बुरे फंसे खादी बोर्ड के डायरैक्टर मेजर सिंह, क्रास केस दर्ज होते ही बदले तेवर, "100 गंडे-100 छित्तर" वाले बने हालात, समझौते के चांस भी बढ़े, पढि़ए इस मामले को लेकर जारी चर्चाओं का दौर

By RAJESH KAPIL

Published on 21 Jan, 2021 05:45 PM.

 जय हिन्द न्यूज नैटवर्क/जालंधर

 

पंजाब कांग्रेस की आंतरिक कलह से जुड़ा जालंधर का वो ज्वलंत मामला अब नया मोड़ लेने जा रहा है जिसमें खुद कांग्रेसी ही राज्य में अपनी सरकार के शासनकाल के दौरान एक दूसरे की "मट्टी पलीद" करने में लगे हैं।

 

 

 

 

इस मामले में जो ताजा अपडेट गत दिवस सामने आया उससे साफ दिखने लगा है कि अब पलड़ा बराबर हो गया है। हालांकि दूसरी तरफ स्थिति भी "100 गंडे-100 छित्तर की ही बनती देख मेजर सिंह के तेवर भी अब ढीले पढ़ते दिखने लगे है जिससे राजीनामा के चांस भी बढ़ गए हैं।

 

 

 

जी हां, वही करीब एक महीने पुराना मामला जिसमें पहले तो पुलिस ने कांग्रेसी नेता एवं आरटीआई एक्टिविस्ट सिमरनजीत सिंह को राजनीतिक प्रैशर के चलते ब्लैकमेलिंग के केस में नामजद किया।फिर कानूनी प्रैशर बढ़ता देख उसी केस को क्रास केस करके "आपहुदरी" करने वाले पंजाब खादी बोर्ड के डायरैक्टर मेजर सिंह को मारपीट के आरोप में आईपीसी की संगीन धाराओं 323, 325 व 34 के तहत नामजद कर लिया।

 

 

 

 

ताजा जानकारी मिली है कि सिटी पुलिस की थाना नई बारादरी पुलिस एक डीडीआर एंट्री करके आरटीआई एक्टिविस्ट सिमरनजीत सिंह पर ब्लैकमेलिंग का आरोप लगाकर केस दर्ज करवाने वाले पंजाब खादी बोर्ड के डायरैक्टर मेजर सिंह को अब शामिल तफ्तीश का नोटिस जारी करने जा रही है।

 

 

 

वहीं, खबर है कि ब्लैकमेलिंग के आरोपी आरटीआई एक्टिविस्ट सिमरनजीत सिंह को भी शामिल तफ्तीश करके आरोपी मेजर सिंह के साथियों की पहचान करवाने में सहयोग करने के लिए तलब करने जा रही है ताकि उनको भी केस में उक्त 323, 325, 34 आईपीसी की धारा के तहत नामजद किया जा सके।

 

 

 

 

 

आंतरिक सूत्र तो यह दावा भी कर रहे हैं कि सिटी पुलिस ने यह कदम उस समय उठाया जब ब्लैकमेलिंग के आरोप में पहले नामजद किए आरोपी आरटीआई एक्टिविस्ट सिमरनजीत सिंह की याचिकाओं पर पंजाब मानव अधिकार आयोग और माननीय पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने सिटी पुलिस को नोटिस जारी कर जबावतलबी की है।

 

 

 

दरअसल, सिमरनजीत ने अपनी मैडीकल आधारित पर शिकायत पर एक्शन न लेने के चलते पंजाब मानव अधिकार आयोग और खुद पर साजिशन दर्ज ब्लैकमेलिंग केस को हाईकोर्ट में चेलेंज किया है जिसको लेकर सिटी पुलिस को दोनों स्तर पर एफिडेविट फाइल करना है और उसके लिए कानून मुताबिक की अपनी कार्रवाई रिपोर्ट भी पेश करनी है।

 

 

 

 

हालांकि सूत्र यह भी दावा कर रहें हैं कि पुलिस सिमरनजीत सिंह पर दर्ज ब्लैकमेलिंग केस को तर्कसंगत नहीं होने के कारण कैंसिल भी करने जा रही है लेकिन उसकी फिलहाल कोई पुष्टि नहीं कर रहा है।

 

 

 

उधर, राजनीतिक गलियारों में इस मामले को लेकर यह चर्चाएं हो रही है कि ब्लैकमेलिंग के आरोप के कारण सदैव संदेह के घेरे में चलने वाले आरोपी सिमरनजीत सिंह को तो पहले भी काफी बार हमलों में "मार" पड़ चुकी हैं लेकिन मारपीट के आरोपी बने डायरैक्टर मेजर सिंह के हालात "100 गंडे-100 छित्तर" वाले बनते दिखने लगे हैं।

 

 

 

 

यहां बता दे कि इतना कुछ होने के बाद उनका और उनके परिजनों व करीबियों के नाम लेकर जो अवैध कृत्यों की पोल सिमरनजीत खोल रहा है, उससे लगने लगा है कि अब कोई भी अथारिटी उनका अवैध कृत्य में न तो साथ देगा और न ही उसमें कोई ढील दे पाएगा।

 

 

 

यह तो अब स्पष्ट है कि अब न तो कोई अवैध कालोनी के खिलाफ अपना एक्शन रोकेगा न किसी अवैध बिल्डिंग के निर्माण में ढील दे पाएगा, अगर वो मेजर से प्रयत्क्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ी होगी।

 

 

 

 

कारण यह कि आरटीआई एक्टिविस्ट सिमरनजीत सिंह को ब्लैकमेलर बताकर, "आपहुदरी" करके उसको साथियों सहित हाथ डालकर, मारपीट कर उस पर केस दर्ज करवाने के लिए औपचारिकताएं बाद में पूरी करवाने के कारण मेजर सिंह खुद कटघरे में आ गए हैं जबकि यही प्रक्रिया अगर पुलिस व प्रशासन की मदद से पहले पूरी की होती तो सिमरनजीत सिंह इस समय जेल की सलाखों के पीछे होता।

 

 

 

 

आम चर्चाओं में मेजर सिंह की दूसरी गलती यह मानी जा रही है कि उसने अपनी ही सरकार के पनसप के चेयरमैन एवं एआईसीसी के मैंबर तेजिंदर बिट्टू पर पहले आनन-फानन में आधारहीन आरोप लगाए और बाद में बिना किसी राजीनामा के अपने आरोपों से हाथ खींच लिया। हालांकि वो आरोप केंद्रीय, राज्य व माननीय कोर्ट के समक्ष भी दायर किए जा चुके थे।

 

 

 

 

 

एक सबसे बड़ी चर्चा यह सुनने को मिल रही है कि कांग्रेसी नेता अब पहले की तरह "वंड खाओ-खंड खाओं, कल्ले खाओ.....आहो" वाली नीति को भूलने लगे हैं जिसके चलते यह सारे विवाद पनप रहे हैं। कांग्रेस की अनुशासन कमेटी का इस मामले का संज्ञान न लेना भी काफी चर्चा का विषय बन रहा है।

 

 

 

 

 

बहरहाल, मामला आम जनता के लिए जितना पेचीदा हो गया है, वहीं पुलिस के लिए यह सिरदर्द भी बना हुआ है। कानूनविदों की माने तो यह सारा मामला यदा-कदा उठाए कदमों की नीति पर आधारित है जिसमें पुलिस का इस्तेमाल किया जा रहा है। सबूतों की कमी और प्रोसीजर फॉलो न होने की सूरत में आरोपी को राहत मिलना तय है।

 

 

 

 

अब चूंकि मेजर के साथी भी आरोपी बनने जा रहे हैं जिससे कयास लगाए जा रहे हैं कि केस का रूख उनके स्टैंड पर निर्भर होगा। । बहरहाल, मामला बेहद रोचक मोड़ पर आकर खड़ा हो गया है जिससे सिटिंग की संभावनाएं काफी बढ़ गई है।

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